CARE B4 CUREOct 27, 20203 min readवर्तमान कानूनों के परिपेक्ष में सामाजिक विवाह समारोह अनावश्यक हो गए हैं।Updated: Oct 29, 2020सामाजिक विवाह समारोह की शुरुआत क्यों हुई है यह एक महत्वपूर्ण बिंदु है। जिसकी जानकारी आवश्यक है। प्राचीन समय में जब कानूनों का शासन नहीं था ,तब समाज के मुखिया ही समाज की सभी गतिविधियों के साक्ष्य व उन गतिविधियों के नियंत्रक व निर्णायक होते थे ।समय के बदलाव के साथ ही अब शासन का तरीका बदल गया। अब सामाजिक व्यक्ति नहीं बल्कि सरकार में चयनित या चुने हुए लोग सरकार चला रहे हैं। जो कि समाज की गतिविधियों को नियंत्रित करने के लिए विभिन्न कानूनों का निर्माण करते हैं।अब तक अनेक कानून बन चुके हैं, जिनके मध्य नजर सामाजिक विवाह समारोह अनावश्यक हो गये हैं।सबसे महत्वपूर्ण परिवर्तन जो कि 2008 में आया जिससे कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 8 में बदलाव किया गया तथा विवाह पंजीकरण अधिकारी हर नगर पालिका व पंचायत में पदस्थ किया गया तथा अब किसी भी प्रथा के अनुसार विवाह करने पर विवाह पंजीकरण अधिकारी से विवाह प्रमाण पत्र प्राप्त कर सकते हैं, जो कि विवाह का सटीक प्रमाण है। इसके विपरीत विशाल सामाजिक विवाह समारोह के बाद भी विवाह प्रमाण पत्र के बिना विवाह को कानूनी मान्यता नहीं है । अगर वह विवाद किसी न्यायालय में चला जाता है ,तो समाज के जो लोग विवाह समारोह में उपलब्ध थे उनमें से भी कोई ना तो विवाह के साक्षी होते हैं, तथा ना ही न्यायालय में गवाह के रूप में उपस्थित होने के लिए तैयार होते हैं।अब सामाजिक लोगों का नियंत्रण व निर्णय भी लुप्त प्राय हो चुका है।अतः सामाजिक विवाह समारोह अनावश्यक हो गए हैं।विवाहित पुत्रियों को पूर्वजों की संपत्ति में बराबर हिस्सा दिए जाने के बाद पुत्रियों का अब विवाह के पश्चात भी अपने माता-पिता से संबंध विच्छेद नहीं हो रहा है। अतः अब समाज को विवाह समारोह के नाम पर इकट्ठा करना अनावश्यक हो गया है।विवाह अब एक सामान्य घटना तथा दो वयस्क लोगों के बीच संविदा मात्र है। ऐसे में सामाजिक समारोह का कोई औचित्य नहीं रह गया है।जैसे कि किसी व्यक्ति की मृत्यु भोज करने के बाद भी वह व्यक्ति शमशान से उठ कर आ जाए , तो हमें क्या अनुभूति होगी वही अनुभूति विशाल सामाजिक विवाह समारोह के बाद पुत्री के पूर्वजों की संपत्ति में हिस्सा मांगने पर होगी।1955 से पूर्व विवाह जन्म - जन्मों का बंधन था , तथा तलाक या विवाह विच्छेद जैसा कोई प्रावधान विवाह में नहीं था। इस कारण विवाह जीवन की एक महत्वपूर्ण घटना थी। अब जब विवाह विच्छेद के प्रावधान हिंदू विवाह अधिनियम में समाहित किए जा चुके हैं, तो विवाह अब जन्म जन्मों का बंधन ना रहकर समय विशेष का बंधन रह गया है।अतः अब सामाजिक विवाह समारोह की कोई आवश्यकता नहीं रह गई है।क्योंकि अब व्यक्ति जीवन में एक से अधिक विवाह भी कर सकता है।सामाजिक विवाह समारोह अब इसलिए भी अनावश्यक हो गया हैं, क्योंकि विवाह में बहुत अधिक धन खर्च होता है। तथा लोगों के लिए रोटी, कपड़ा , मकान की आवश्यकता की पूर्ति के बाद बच्चों को पढ़ाना - लिखाना व उनकी रोजगार की व्यवस्था करना ही मुश्किल हो रहा है।उसके बाद विशाल सामाजिक विवाह समारोह तो समाज में बहुत सी समस्याओं की जड़ व विवादों का कारण बना हुआ है।दहेज की समस्या जिस तरह समाज में विद्यमान है उसका भी मूल कारण सामाजिक विवाह समारोह ही है।अतः सामाजिक विवाह समारोह को समाप्त किया जाना समाज में अनेक समस्याओं व विवादों का अंत कर सकता है। Care B4 Cure
सामाजिक विवाह समारोह की शुरुआत क्यों हुई है यह एक महत्वपूर्ण बिंदु है। जिसकी जानकारी आवश्यक है। प्राचीन समय में जब कानूनों का शासन नहीं था ,तब समाज के मुखिया ही समाज की सभी गतिविधियों के साक्ष्य व उन गतिविधियों के नियंत्रक व निर्णायक होते थे ।समय के बदलाव के साथ ही अब शासन का तरीका बदल गया। अब सामाजिक व्यक्ति नहीं बल्कि सरकार में चयनित या चुने हुए लोग सरकार चला रहे हैं। जो कि समाज की गतिविधियों को नियंत्रित करने के लिए विभिन्न कानूनों का निर्माण करते हैं।अब तक अनेक कानून बन चुके हैं, जिनके मध्य नजर सामाजिक विवाह समारोह अनावश्यक हो गये हैं।सबसे महत्वपूर्ण परिवर्तन जो कि 2008 में आया जिससे कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 8 में बदलाव किया गया तथा विवाह पंजीकरण अधिकारी हर नगर पालिका व पंचायत में पदस्थ किया गया तथा अब किसी भी प्रथा के अनुसार विवाह करने पर विवाह पंजीकरण अधिकारी से विवाह प्रमाण पत्र प्राप्त कर सकते हैं, जो कि विवाह का सटीक प्रमाण है। इसके विपरीत विशाल सामाजिक विवाह समारोह के बाद भी विवाह प्रमाण पत्र के बिना विवाह को कानूनी मान्यता नहीं है । अगर वह विवाद किसी न्यायालय में चला जाता है ,तो समाज के जो लोग विवाह समारोह में उपलब्ध थे उनमें से भी कोई ना तो विवाह के साक्षी होते हैं, तथा ना ही न्यायालय में गवाह के रूप में उपस्थित होने के लिए तैयार होते हैं।अब सामाजिक लोगों का नियंत्रण व निर्णय भी लुप्त प्राय हो चुका है।अतः सामाजिक विवाह समारोह अनावश्यक हो गए हैं।विवाहित पुत्रियों को पूर्वजों की संपत्ति में बराबर हिस्सा दिए जाने के बाद पुत्रियों का अब विवाह के पश्चात भी अपने माता-पिता से संबंध विच्छेद नहीं हो रहा है। अतः अब समाज को विवाह समारोह के नाम पर इकट्ठा करना अनावश्यक हो गया है।विवाह अब एक सामान्य घटना तथा दो वयस्क लोगों के बीच संविदा मात्र है। ऐसे में सामाजिक समारोह का कोई औचित्य नहीं रह गया है।जैसे कि किसी व्यक्ति की मृत्यु भोज करने के बाद भी वह व्यक्ति शमशान से उठ कर आ जाए , तो हमें क्या अनुभूति होगी वही अनुभूति विशाल सामाजिक विवाह समारोह के बाद पुत्री के पूर्वजों की संपत्ति में हिस्सा मांगने पर होगी।1955 से पूर्व विवाह जन्म - जन्मों का बंधन था , तथा तलाक या विवाह विच्छेद जैसा कोई प्रावधान विवाह में नहीं था। इस कारण विवाह जीवन की एक महत्वपूर्ण घटना थी। अब जब विवाह विच्छेद के प्रावधान हिंदू विवाह अधिनियम में समाहित किए जा चुके हैं, तो विवाह अब जन्म जन्मों का बंधन ना रहकर समय विशेष का बंधन रह गया है।अतः अब सामाजिक विवाह समारोह की कोई आवश्यकता नहीं रह गई है।क्योंकि अब व्यक्ति जीवन में एक से अधिक विवाह भी कर सकता है।सामाजिक विवाह समारोह अब इसलिए भी अनावश्यक हो गया हैं, क्योंकि विवाह में बहुत अधिक धन खर्च होता है। तथा लोगों के लिए रोटी, कपड़ा , मकान की आवश्यकता की पूर्ति के बाद बच्चों को पढ़ाना - लिखाना व उनकी रोजगार की व्यवस्था करना ही मुश्किल हो रहा है।उसके बाद विशाल सामाजिक विवाह समारोह तो समाज में बहुत सी समस्याओं की जड़ व विवादों का कारण बना हुआ है।दहेज की समस्या जिस तरह समाज में विद्यमान है उसका भी मूल कारण सामाजिक विवाह समारोह ही है।अतः सामाजिक विवाह समारोह को समाप्त किया जाना समाज में अनेक समस्याओं व विवादों का अंत कर सकता है। Care B4 Cure
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