Care B4 Cure
Govt of Rajasthan No. COOP - 2020 - Jaipur - 200402 Niti Aayog Reg No. RJ/2020/0264925
JUDGMENTS
18 साल की उम्र तक अमान्य घोषित ना हो तो नाबालिग का विवाह वैध हो जाता है, हिंदू विवाह अधिनियम के धारा 13B के तहत भंग करने की अनुमति: पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि यदि किसी लड़की ने 18 वर्ष की उम्र से पहले शादी की है तो भी वह तलाक की डिक्री के जरिए अलग होने की मांग कर सकती है, यदि वयस्क होने तक उसके विवाह को हिंदू विवाह अधिनियम (एचएमए) के तहत शून्य घोषित नहीं किया गया था। जस्टिस रितु बाहरी और जस्टिस अरुंग मोंगा की खंडपीठ ने कहा कि इस प्रकार के विवाह को एचएमए की धारा 13(2)(iv) के तहत अमान्य घोषित नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह प्रावधान उस लड़की पर लागू होता है, जिसकी शादी पन्द्रह वर्ष की उम्र से पहले हुई है।
बिना किसी अपराध के किसी व्यक्ति को समन करना और हिरासत में लेना अवैध है; सुप्रीम कोर्ट
इस मामले में, एक व्यक्ति ने आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और संहिता की धारा 41 ए के तहत उचित नोटिस दिए बिना उसे गिरफ्तार न करने का निर्देश देने की मांग की। इस प्रकार एकल न्यायाधीश ने पुलिस को अर्नेश कुमार बनाम बिहार राज्य, सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित दिशा-निर्देशों का सख्ती से पालन करने का निर्देश दिया।
पीसी एक्ट खुद में एक कोड है- भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के आरोपी का बैंक खाता सीआरपीसी की धारा 102 के तहत अटैच नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम (पीसीए) के तहत आरोपी व्यक्ति के बैंक खाते को आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 102 के तहत कुर्क (अटैच) नहीं किया जा सकता है। जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एमएम सुंदरेश की बेंच ने कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील मंजूर करते कहा, "सीआरपीसी की धारा 102 का सहारा लेकर अपीलकर्ता के बैंक खाते की फ्रीजिंग को जारी रखना संभव नहीं है, क्योंकि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम अपने आप में एक संहिता (कोड) है।"
विशेष विवाह अधिनियम के तहत मुस्लिम पुरुष द्वारा हिंदू महिला से किया गया दूसरा विवाह अमान्य : गुवाहाटी हाईकोर्ट
गुवाहाटी हाईकोर्ट ने कहा कि विशेष विवाह अधिनियम की धारा चार किसी मुस्लिम पुरुष द्वारा एक हिंदू महिला के साथ अनुबंधित दूसरी शादी का बचाव नहीं करती, अत: ऐसा विवाह अमान्य होगा। विशेष विवाह अधिनियम की धारा चार के अनुसार, विशेष विवाहों के अनुष्ठापन से संबंधित शर्तों में से एक यह है कि किसी भी पक्ष का जीवनसाथी जीवित नहीं होना चाहिए।
पति की मृत्यु के बाद, ससुर को विरासत में मिली संपत्ति से भरण-पोषण का दावा करने का महिला को पूरा अधिकार: बॉम्बे हाईकोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा है कि पति की मृत्यु के बाद, एक महिला को ससुर द्वारा विरासत में प्राप्त संपत्ति से भरण-पोषण का दावा करने का पूरा अधिकार है। हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी एक व्यक्ति द्वारा दायर रिट याचिका की सुनवाई में की। याचिका में फैमिली कोर्ट, बांद्रा द्वारा पारित एक आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें कोर्ट ने व्यक्ति को अपनी विधवा बहू और पोते को अंतरिम भरण-पोषण प्रदान करने का आदेश दिया था। जस्टिस नितिन डब्ल्यू सैमब्रे ने कहा कि हिंदू दत्तक और भरण-पोषण अधिनियम, 1956 की धारा 19 के अनुसार, याचिकाकर्ता के बेटे की विधवा को अपने ससुर, यानी याचिकाकर्ता को विरासत में मिली संपत्ति से भरण-पोषण का दावा करने का पूरा अधिकार है।
सीआरपीसी की धारा 156(3) के तहत जांच का आदेश देने से पहले शिकायतकर्ता की जांच करने की जरूरत नहीं: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया है कि न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा सीआरपीसी की धारा 156 (3) के तहत पुलिस जांच का आदेश देने से पहले आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 200 के तहत शिकायतकर्ता से शपथ लेने की कोई आवश्यकता नहीं है।
वैवाहिक क्रूरता : आखिर पुलिस क्यों महिला को उसके पति के घर वापस जाने के लिए मजबूर कर रही है?", इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पुलिस अधीक्षक से जवाब मांगा
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बुधवार को वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, अलीगढ़ और कासगंज के पुलिस अधीक्षक से स्पष्टीकरण मांगा कि एक महिला को उसके पति द्वारा प्रताड़ित करके उसके ससुराल से बाहर निकालने के बाद पुलिस क्यों उस महिला को उसके पति के घर जाने के लिए मजबूर कर रही है। न्यायमूर्ति जे जे मुनीर की पीठ ने कहा: "याचिकाकर्ता प्रथम दृष्टया एक अकेली महिला है, जिसके पास जाने के लिए कोई जगह नहीं है और अब उसे अपने पति के पास वापस जाने के लिए पुलिस सहित उत्तरदाताओं के हाथों उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा है, जहां वह वैवाहिक क्रूरता का शिकार हो सकती है और हो सकता है कि उसके जीवन को खतरा हो।"
उच्चतम न्यायालय की पीठ ने आदेश में उल्लेख किया, "उच्च न्यायालय एक संकट की स्थिति में हैं। -उच्च न्यायालयों में लगभग 40% रिक्तियां हैं, जिनमें से कई उच्च न्यायालय अपनी स्वीकृत शक्ति के 50% के साथ काम कर रहे हैं।"
उच्चतम न्यायालय ने सरकार को हिदायत देते हुए कहा कि “यदि सरकार को कॉलेजियम की सिफारिशों पर कोई आपत्ति है, तो उसे आपत्ति के विशिष्ट कारणों के साथ नामों को वापस भेजना चाहिए।” और समय- सीमा निम्नानुसार प्रतिपादित कि;
1. इंटेलिजेंस ब्यूरो ( आईबी) को उच्च न्यायालय कॉलेजियम की सिफारिश की तारीख से 4 से 6 सप्ताह में अपनी रिपोर्ट / इनपुट केंद्र सरकार को सौंपने चाहिए।
2. यह वांछनीय होगा कि केंद्र सरकार राज्य सरकार से विचारों की प्राप्ति की तारीख और आईबी से रिपोर्ट / इनपुट से 8 से 12 सप्ताह के भीतर सुप्रीम कोर्ट में फाइलों / सिफारिशों को भेजे।
3. इसके बाद सरकार के लिए यह उपर्युक्त होगा कि इन पर तुरंत नियुक्ति करने के लिए आगे बढ़े और निस्संदेह अगर सरकार के पास उपयुक्तता या सार्वजनिक हित में कोई आपत्ति है, तो इसी समय की अवधि के भीतर आपत्ति के विशिष्ट कारणों को दर्ज कर इसे उच्चतम न्यायालय कॉलेजियम के पास वापस भेजा जा सकता है।
उच्चतम न्यायालय ने अपने आदेश मे प्रतिपादित किया कि हाईकोर्ट क्रिमिनल प्रक्रिया सहिंता कि धारा 482 के तहत याचिका रद्द करते समय “गिरफ़्तार ना करने और /या कोई कठोर कदम ना उठाने के आदेश नहीं दे सकते”।
उच्चतम न्यायालय ने अपने आदेश में दिशा-निर्देश जारी करते हुए बताया है कि कब और कहां उच्च न्यायालय या तो एफआईआर / शिकायत में आगे की जांच में रोक लगाने या पुलिस / जांच एजेंसी द्वारा लंबित जांच के दौरान "कोई कठोर कदम ना उठाने " और / या गिरफ्तार न करने की प्रकृति में अंतरिम आदेश देना या धारा 482 सीआरपीसी के तहत रद्द करने कि याचिका के दौरान और / या भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत उच्च न्यायालय के समक्ष लंबित मामले में कोई अंतरिम आदेश पारित करने में न्यायसंगत होगा।
उच्चतम न्यायालय ने अपने आदेश मे प्रतिपादित कर सरकार को रोहिंग्याओं के निर्वासन की अनुमति दी, और कहा, "निर्वासित ना होने का अधिकार मौलिक अधिकार से जुड़ा हुआ है, तथा यह मौलिक अधिकार केवल भारतीय नागरिकों के लिए उपलब्ध है।"
उच्चतम न्यायालय ने अपने आदेश में जम्मू में होल्डिंग केंद्रों में हिरासत में लिए गए लगभग 150 रोहिंग्याओं की रिहाई का आदेश देने से इनकार कर दिया है, और कानून की प्रक्रिया के अनुसार मूल देश में उनके निर्वासन की अनुमति दी है।अंतरिम राहत प्रदान करना संभव नहीं है बता कर यह भी स्पष्ट किया कि जम्मू में रोहिंग्याओं, जिनकी ओर से आवेदन दिया गया है, उन्हें तब तक नहीं हटाया जाएगा जब तक कि इस तरह के निर्वासन के लिए निर्धारित प्रक्रिया का पालन नहीं किया जाता है।।
सरकारी अधिकारियों को तलब करने का अभ्यास उचित नहीं है क्योंकि उनकी अनुपस्थिति के कारण जनता को परेशानी होती है।
उच्चतम न्यायालय ने अपने आदेश मे प्रतिपादित किया कि अधिकारियों को अदालत में बुलाने का लगातार अभ्यास उचित नहीं है, शक्तियों के पृथक्करण का सिद्धान्त के मद्देनजर, यह न्याय प्रशासन के उद्देश्य की पूर्ति नहीं करता है, यदि किसी कार्यकारी का आदेश कानूनी नहीं है, तो न्यायालयों के पास इस तरह के आदेश को रद्द करने का पर्याप्त अधिकार है।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने दिशानिर्देश जारी किए कि किन मामलों में अग्रिम जमानत चार्ज शीट प्रस्तुत करने के बाद भी दि जा सकती हैं।
न्यायमूर्ति श्री सिद्धार्थ जी की एकल पीठ ने उक्त अवलोकन करते हुए, यह प्रतिपादित किया कि किन मामलों में न्यायालयों द्वारा आरोप पत्र या संज्ञान लेने के बाद भी अग्रिम जमानत दी जा सकती है।
उड़ीसा उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में प्रतिपादित किया कि कब क्रिमिनल प्रक्रिया सहिंता की धारा 82 में भगोड़े अभियुक्त व्यक्ति की प्रॉपर्टी जब्त की जा सकेगी।
उड़ीसा उच्च न्यायालय ने अपने आदेश मे प्रतिपादित किया कि ग़ैर जमानती वारंट पारित करने के बाद भी अगर अभियुक्त व्यक्ति अदालत के समक्ष खुदको पेश नही करता है, तो क्रिमिनल प्रक्रिया सहिंता की धारा 82 के तहत भगोड़े अभियुक्त व्यक्ति की प्रॉपर्टी जब्त की जा सकेगी।
उच्चतम न्यायालय ने अपने आदेश मे प्रीतिपादित किया कि जिस प्रकार स्वतंत्रता अभियुक्त व्यक्ति के लिए अनमोल होती है, उसी प्रकार से शांति, कानून और व्यवस्था भी समाज के लिए समान रूप से महत्वपूर्ण है।
उच्चतम न्यायालय ने अपने आदेश मे प्रतिपादित किया कि Cr.P.C. के प्रावधान अभियुक्तों को जमानत देने के लिए आपराधिक न्यायालयों को विवेकाधिकार प्रदान करते है, मगर जिस प्रकार स्वतंत्रता अभियुक्त व्यक्ति के लिए अनमोल होती है, उसी प्रकार से शांति, कानून और व्यवस्था भी समाज के लिए समान रूप से महत्वपूर्ण हैं। इसलिए क्षेत्राधिकार का प्रयोग बहुत सावधानी से किया जाता है, और किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार और सामान्य रूप से समाज के हित को संतुलित करके सावधानी बरती जानी चाहिए।
उच्चतम न्यायालय की पीठ ने अपने आदेश मे बताया कि हाईकोर्ट द्वारा तब तक निर्णय में हस्तक्षेप नहीं किया जाना चाहिए जब तक कानून का व्यापक प्रश्न न शामिल हो।
प्रथम अपीलीय अदालत तथ्यों से संबंधित अंतिम अदालत है । इस कोर्ट ने बार - बार यह स्पष्ट किया है कि हाईकोर्ट द्वारा सीपीसी की धारा 100 के तहत अपने अधिकार क्षेत्र का इस्तेमाल करते हुए प्रथम अपीलीय अदालत के फैसले में तब तक हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए जब तक कि कानून का व्यापक प्रश्न इसमें शामिल न हो ।
उच्चतम न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि 3 साल तक के सजा के मामलो में अगर 2 साल तक ट्रायल शुरू नहीं होती है, तो प्रकरण को बंद कर दिया जाए।
न्यायलयों में बढ़ते मुकदमों की संख्या व बोझ को देखते हुए कॉमन कॉज द्वारा एक जन हित याचिका उच्चतम न्यायालय में पेश की गयी जिसमे कि ये सिद्धांत प्रतिपादित हुआ कि अगर किसी प्रकरण में अधिकतम सजा 3 वर्ष है, तथा 2 वर्ष तक उसकी ट्रायल शुरू नहीं हुई है, तो ऐसे प्रकरणों को बंद कर दिया जाना चाहिए।
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 15/03/2020 से 14/03/2021 तक की अवधि को परिसीमा अधिनियम के दायरे से बाहर कर दिया गया है
भारत के सर्वोच्च न्यायालय की एक खंड पीठ ने दिनांक 08/03/2021 को आदेश पारित कर, कोविड-19 की वजह से 15/03/2020 से 14/03/2021 तक की अवधि को परिसीमा अधिनियम के दायरे से बाहर कर, (अपील, पुनरीक्षण, व दिवानी वाद विवादों )को पेश करने की अनुमति पारित की।
विवाहित हिन्दू महिला परिवार समझौते के तहत प्राप्त अपने हिस्से कि सम्पति का निपटारा मायके पक्ष के लोगो के साथ भी कर सकती है। (S.C.)
प्रकरण में पारिवारिक समझौते के तहत लाभ लेने वाला हर पक्ष किसी न किसी तरह एक - दूसरे से सम्बंधित होना चाहिए। कोर्ट ने हिन्दू उत्तराधिकार
अधिनियम की धारा 15 (1 ) (डी) के हवाले से कहा है कि जब महिला अपने पिता कि उत्तराधिकारी हो सकती है। ऐसे में उस व्यक्ति को अजनबी नहीं माना
जा सकता तथा उसे पुत्री के हिस्से कि सम्पति दी जा सकती है।
कर्मचारी के विरुद्ध रिटायरमेंट के बाद अगर अनुशासनात्मक कार्यवाही
चालू रखी जाती है। तो उसकी ग्रेच्युटी से सम्बंधित दंड दिया जा सकता है।
प्रकरण में कर्मचारी के विरुद्ध रिटायरमेंट तक भी अनुशासनात्मक कार्यवाही का निर्णय पारित नहीं हुआ तो रिटायरमेंट के बाद उसे सेवा से बर्खास्त करने का दंड नहीं दिया जाता है केवल माननीय उच्चत्तम न्यायालय ने उच्च न्यायालय के इस निर्णय को बदल दिया गया कि रिटायरमेंट के बाद भी किसी कर्मचारी को बर्खास्त नहीं किया जा सकता है।
लॉकर की सुरक्षा और संचालन सुविधा सुनिश्चित करना बैंक का कर्तव्य है।
(S.C. )
लॉकर की सुरक्षा व संचालन में जरुरी सावधानी बरतना बैंको का दायित्व है तथा बैंक अपनी इस जिम्मेदारी से पल्ला नहीं झाड़ सकते है। सुप्रीम कोर्ट ने रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया (RBI ) को आदेश दिया है की वह बैंको के लिए छ: महीने के भीतर लॉकर प्रबंधन के रेगुलेशन जारी कर। कोर्ट ने कहा कि बैंको को इस
बारे में एकतरफ़ा नियम तय करने की छूट नहीं होनी चाहिए।
उच्च शिक्षित पत्ति के विरुद्ध शिकायतें कर उसकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुचाना या उसके क़रियर में बाधा पहुचाना तलाक का उचित आधार है । (S.C. )
प्रकरण में फॅमिली कोर्ट द्वारा उच्च शिक्षित पत्ति के विरुद्ध शिकायतों को प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने वाली व केयर में बाधा उत्पन्न करने वाली मान।और इस आधार पर तलाक स्वीकृत कर दिया गया। जिसको की माननीय उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने पलट दिया। जिसकी 2 अपील माननीय उच्चत्तम न्यायालय में पेश
की गई। उच्च शिक्षित पत्ति के विरुद्ध शिकायतेकर उसकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुचाना या उसके केयर में बाधा पहुचाना तलाक का उचित आधार ह। (S.C.)
अगर किसी महिला के बारे में यह जानते हुए की वो विवाहित है। कोई उस से विवाह करता है। तो वह भरण पोषण के दायित्व से नहीं बच सकता। (C.H.C. )
प्रकरण में एक विवाहित महिला से बिना विधिक तलाक हुए ये जानते हुए भी विवाह किया गया। तथा विवाह को शून्य मानते हुए निचली अदालत में धारा 125 Cr.P.C.का प्रार्थना पत्र ख़ारिज कर दिया गया। जिसके विरुद्ध छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय में रिवीजन पेश की गई।माननीय छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने यह
आदेश पारित किये की किसी विवाहित महिला से बिना विधिक तलाक हुए यह जानते हुए भी विवाह करता है। तो वह धारा 125 Cr.P.C. में भरण पोषण के
लिए जिम्मेदार होगा |
झूठे आरोप का आरोप धारा 211 IPC केवल शिकायत करता के विरुद्ध हो सकती है न कि अनुसंधान अधिकारी के । (M.H.C.)
मद्रास उच्च न्यायालय ने कहा है की जिस अपराध की जाँच की या आपराधिक शिकायत दर्ज कराई या अंतिम रिपोर्ट दायर की उस आरोप से आरोपी को
बरी किये जाने के बाद भी धारा 211 के तहत अनुसंधान अधिकारी के खिलाप मुक़दमा नहीं चलाया जा सकता यह मुक़दमा उस व्यक्ति के खिलाप चलाया जा सकता है जिसने पुलिस को झूठी इत्तिला दी।
तुच्छ एवं तंग करने वाली मुक़दमा बाजी को कोर्ट का समय ख़राब करने से
रोकना कोर्ट की आर्डर 7 रूल 11 की शक्तियों में निहित है। (S.C.)
प्रकरण में बिना किसी उचित वाद करण के केवल बनावटी वाद कारण द्वारा प्रकरण को पेश किया गया जिसे की मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा
ख़ारिज कर दिया गया है। और जिसको की माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा भी उचित ठहराया गया। इस प्रकार बिना उचित वाद कारण के
प्रस्तुत किया गया वाद ख़ारिज योग्य है।
सरकारी कर्मचारियों को वेतन एवं पेंशन एक अधिकार प्रदत्त हक है इसलिए देरी से भुगतान पर ब्याज देय है ! (s.c.)
माननीय उच्चतम न्यालय में राज्य सरकार की इस याचिका को ख़ारिज कर दिया की देरी भुगतान वेतन या पेंशन पर ब्याज से मुक़्त किया जाये तात्पर्य यह है कि वेतन , पेंशन या अन्य परिलाभ भुगतान देरी से किये जाते है तो उन पर ब्याज देय होगा
विवाद सम्बन्धों से मिली कोई भी सम्पत्ति का विवाद सुनने का क्षेत्राधिकार
Family Court को है | (KERALA HIGH COURT)
इस प्रकरण में सम्पत्ति को लेकर विवाद सास और बहु के बिच था। माननीय उच्च न्यायालय केरला ने अपीलार्थी की इस अपील को अस्वीकार कर दिया कि
प्रकरण में पारिवारिक न्यालय को सुनने का क्षेत्राधिकार नहीं है यानी सम्पत्ति के पारिवारिक विवाद जो कि विवाह के फलस्वरूप है वे फेमेली कोर्ट द्वारा
ही सुने व तय किए जायेगे |
किसी सम्पति के सवामित्व का दावा , कब्ज़ा प्राप्त करने का आधार नहीं हो
सकता । S.C.
माननीय उच्चतम न्यायालय ने "Possession Follow Title" के सिद्धांत को केवल खाली जमीन या अन्य ऐसी सम्पति जो की प्रकृति प्रदत्त है। तक ही सिमित कर दिया है। अगर कोई प्रॉपर्टी मानव निर्मित है तो उस अवस्था में उसके निर्माण व उस पर कब्ज़ा इस तरह के विवादों को तय
करने के लिए महत्वपूर्ण साक्ष्य होंगे।
भरण पोषण भत्ता देने से इंकार भी डी वी एक्ट 2005 के अंतर्गत आर्थिक
दुर्व्यवहार है :- Tripura High Court
घरेलू हिंसा से स्त्री का संरक्षण अधिनियम 2005 में दी गयी घरेलू हिंसा की परिभाषा में अनेक आर्थिक एवं फिजिकल कृत्यों को शामिल किया गया है इसी के
तहत माननीय त्रिपुरा उच्च न्यायालय ने पत्नी को भरण पोषण देने के लिये इंकार करना भी घरेलू हिंसा की श्रेणी में रखा गया है।
ऑफिसियल वेबसाइट से लिया गया प्रिंटआउट स्वीकार्य दस्तावेज़ है। - Bombay HIGH COURT
ऑफिसियल वेबसाइट से लिया गया आदेश निचली अदालत में पेश किया जाता है। तो वह स्वीकार्य दस्तावेज़ है। क्यों की निचली अदालते उस दस्तावेज की सत्यता ऑफिसियल वेबसाइट पर जाकर चेक कर सकते है इस प्रकार उच्चन्यायालय या उच्चतम न्यायालय की निणयो की प्रमाणित प्रतिलिपि पेश करने
की अब कोई आवश्यकता नहीं रह गई है तथा निचली अदालते ऑफिसियल वेबसाइट से लिये गये दस्तावेजो को मान्य के लिये बाध्य है।
विवाहोत्तर संबध धारा 498 A में दी गयी क्रूरता में शामिल नहीं - सुप्रीम कोर्ट
माननीय उच्चतम न्यायालय ने विवाहोत्तर सम्बन्धो को 498 A में क्रूरता की दी गयी परिभाषा में शामिल नहीं माना तथा आत्महत्या के लिया उकसाना की धारा 306 IPC में अपराध घटित होने का आधार भी नहीं माना माननीय उच्चतम न्यायालय ने 498 A में दी गयी परिभाषा को केवल मात्र पति या पति के रिश्तेदारो से किसी प्रकार की आर्थिक या मूल्यवान सम्पति की मांग या प्राप्त करना ही माना है।
सरकार या पंचायत की भूमि पर अवैध रूप से कब्जा किया हुआ व्यक्ति अधिकार स्वरूप नियमितीकरण का दावा नहीं कर सकता। - सुप्रीम कोर्ट
माननीय उच्चतम न्यायालय ने यह प्रतिपादित कर दिया है की सरकार या पंचायत की भूमि पर अवैध कब्जेदार नियमितीकरण का दावा अधिकार स्वरूप नहीं कर सकता है। इसका आशय है कि सरकारी या पंचायती जमीन पर रहवासीय आधार का नियमितीकरण सरकार या पंचायत ही कर सकती है।
बहू को बाहर निकालने के लिए वरिष्ठ नागरिक अधिनियम का उपयोग नहीं कर सकते | -सर्वोच्च न्यायालय
प्रकरण मे बहु को सीनियर सिटीजन एक्ट के तहत डिक्री में माध्यम से घर से निकल दिया गया बहु ने घरेलू हिंसा से स्त्री का संरक्षण अधिनियम के तहत घर में रहने के आदेश चाहे जब निचली अदालतों में कोई संरक्षण प्राप्त नहीं हुआ तो मामला माननीय सर्वोच्च न्यायालय तक पंहुचा माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने
सिद्धांत प्रतिपादित कर दिया है की घरेलू हिंसा से स्त्री का संरक्षण अधिनियम के तहत आदेश सीनियर सिटीजन एक्ट के ऊपर प्रभावी हो गया।
केवल करंसी नोटों की बरामदगी भ्रष्टाचार अधिनियम की रोकथाम के लिए
धारा 7 के तहत अपराध का गठन करने के लिए पर्याप्त नहीं है -सर्वोच्च न्यायालय
भ्रष्टाचार का आरोप साबित करने के लिए किसी व्यक्ति के पास नोटों की बरामदगी पर्याप्त आधार नहीं है बल्कि अभियोजन को यह संदेश से परे साबित करना होगा कि उस व्यक्ति ने यह जानते हुऐ नोटों को स्वीकार किया गया है कि वह नोट आरोप्वत के रूप में ले रहा है।
किसी महिला के साथ नजदीकियां भी महिला की छवि खराब करने का आधार नहीं हो सकता - पंजाब हरियाणा हाई कोर्ट
किसी महिला से नजदीकी सम्बन्ध है तथा उसके साथ अंतरंग फोटो या विडिओ या अन्य कोई दस्तावेज भी है तो भी उन्हें सोशल मीडिया या अन्य किसी
माध्यम से लोगों का बीच पहुंचना गंभीर अपराध की श्रेणी मे है ऐसे मामलों मे अग्रिम जमानत का लाभ नहीं दिया जा सकता।
आपराधिक न्यायालय शिकायतकर्ता की बकाया उगाही के लिए वसूली एजेंट नहीं है : सुप्रीम कोर्ट
किसी मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के आधार पर, अग्रिम जमानत के लिए प्रार्थना को मंजूरी देने या उसे अस्वीकार करने के लिए एक अदालत के लिए खुला है ... एक आपराधिक अदालत से जमानत / अग्रिम जमानत देने के लिए अधिकार क्षेत्र का उपयोग करते हुए, शिकायतकर्ता से बकाया उगाही करने के लिए, और वह भी बिना किसी ट्रायल के, एक वसूली एजेंट के रूप में कार्य करने की उम्मीद नहीं है।
सी आर पी सी की धारा 173 (8 ) केवल जाँच एजेंसी को अग्रिम अनुशंधान की शक्तियां प्रदान करती है।
सी आर पी सी की धारा 173 (8 ) केवल जाँच एजेंसी को अग्रिम अनुशंधान की शक्तियां प्रदान करती है। अपनी 41 वीं रिपोर्ट में विधि आयोग ने यह तथ्य स्थापित कर दिया है की अग्रिम अनुसन्धान की शक्तियां सिर्फ जाँच एजेंसी को ही उपलब्ध है।
30 दिन का विवाह पूर्व नोटिस पक्षकारों की इच्छा पर निर्भर है- इलाहाबाद हाई कोर्ट
स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत विवाह करने के लिए पूर्व में 30 दिन का विवाह पूर्व नोटिस जारी किया जाना आवश्यक था तथा सभी जिला मजिस्ट्रेट इसका पालन करते थे। विवाह की न्यूनतम आयु 18 वर्ष है तथा वयस्कता की आयु भी 18 वर्ष है , तथा व्यस्क (महिला एवं पुरुष) अपने जीवन के बारे में हर निर्णय लेने के लिए विधिअनुसार स्वतंत्र है। अतः यह प्रावधान विधि विरुद्ध था इसलिए माननीय इलाहबाद उच्च न्यायालय ने अब ये नोटिस पक्षकारों की इच्छा पर छोड़ दिया है।
भरण - पोषण के लिए अब देना होगा आय व्यय व संपत्ति का विवरण
सुप्रीम कोर्ट ने शादी के एक विवाद के मामले में गुजारा भत्ता तय करने के लिए अहम फैसला दिया है।
कोर्ट ने कहा है कि दोनों पार्टियों पति और पत्नी को अदालत में सुनवाई के दौरान अपनी दौरान कमाई संपत्ति खर्च और देनदारियों का खुलासा करना होगा। साथ ही अदालत में आवेदन दाखिल करने की तारीख से गुजारा भत्ता तय होगा।
अपनी की अर्जी पर पति को 4 हफ्ते में जवाब देना होगा तथा कोर्ट से दो मौके दे सकती है अगर इस दौरान भी पति जवाब नहीं देता तो कोट्स का बचाओ खत्म करके अर्जी के मुताबिक फैसला सुना सकता है।
गलत जानकारी देने पर मुकदमा और अवमानना का केस चलेगा।
अंतरिम आदेश हलफनामा दायर करने के 6 महीने के भीतर देना होगा ।
चार दीवारी के भीतर कही बात पर नहीं लगता ST-SC ACT
किसी भी अनुसूचित जाती या जनजाति के व्यक्ति को लेकर घर के भीतर कही कोई अपमान जनक बात जिसका कोई गवाह ना हो वह अपराध नहीं हो सकता ! सार्वजानिक स्थान और ऐसे स्थान जंहा पर लोगो की मौजूदगी हो वंही पर की गयी अपमान जनक बातें अनुसूचित जाती एवं जनजाति उत्पीड़न रोकथन अधिनियम की सेक्शन3(1)(r) के तहत अपराध की श्रेणी में आएगा !
ज़मानत देना एक नियम है और जेल अपवाद : हाईकोर्ट को दिलाया याद सुप्रीम कोर्ट ने
एक आरोपी को ज़मानत देने से हाईकोर्ट के इंकार के बाद सुप्रीम कोर्ट ने उसे ज़मानत देते हुए कहा कि ज़मानत देना नियम है और जेल में रखना अपवाद। इस आदमी के ख़िलाफ़ पुलिस ने मामले को बंद कर दिया था लेकिन हाईकोर्ट ने इसके बाद भी उसे ज़मानत नहीं दी। इस आदमी के ख़िलाफ़ 2012 में धोखाधड़ी का एक मामला दर्ज किया गया था और 2013 में पुलिस ने इस मामले को बंद कर दिया। लेकिन पाँच साल बाद न्यायिक मजिस्ट्रेट ने इस मामले की दुबारा जाँच का आदेश दिया।
पति के साथ संपत्ति का दावा करने के लिए तलाकशुदा पत्नी के लिए कोई सीमा अवधि नहीं : Kerala High Court FB
विवाह और तलाक के संबंध में लागू होने वाले समय के लिए किसी भी कानून में दिए गए प्रावधान के रूप में सहेजें, इस अधिनियम में कुछ भी इस तरह के किसी भी कानून के तहत किसी भी सूट या अन्य कार्यवाही पर लागू नहीं होगा।
आपराधिक शिकायत को रद्द करना एक अपवाद होना चाहिए और साधारणतः ऐसा नहीं होना चाहिए : सुप्रीम कोर्ट
अपराधिक रिपोर्ट पर अनुसंधान करना पुलिस का कार्य है सामान्यत अपराधिक रिपोर्ट को खारिज किया जाना विधि के सिद्धांतों के विपरीत फिर भी विशेष परिस्थितियों में ही अपराधिक रिपोर्ट को सक्षम न्यायालय द्वारा खारिज किया जा सकता है
किसी और के जीवनसाथी के साथ विवाहित व्यक्ति का रहना एक अनैतिक कार्य, पुलिस सुरक्षा का आदेश देकर इसको मंजूरी नहीं दे सकते : राजस्थान हाईकोर्ट
''किसी और के पति या पत्नी के साथ विवाहित व्यक्ति का रहना एक अनैतिक कृत्य के समान है। ऐसे में पुलिस को उन्हें सुरक्षा देने का निर्देश देकर इस कार्य को मंजूरी नहीं दी जा सकती है।'' इसी के साथ कोर्ट ने याचिकाकर्ता पर दस हजार रुपये का जुर्माना भी लगा दिया है।