top of page

"वर्तमान कानूनों ने महिलाओं को पूर्ण रूप से संरक्षित एवं सुरक्षित कर दिया है।"

प्रकृति ने मानव जाति में पुरुष एवं स्त्री की रचना की है। इसमें सामान्यतः पुरुष का स्वभाव आक्रामक एवं स्त्री का स्वभाव स्थिर एवं शांत चित्त बनाया। शायद इसी का परिणाम रहा कि स्त्रियों में समय के साथ असुरक्षा की भावना बढ़ती गई। प्राचीन समय से ही स्त्रियां सदैव पुरुषों के पीछे रही। इसका मुख्य कारण रहा जागरूकता एवं शिक्षा का अभाव ।

अब महिलाओं में शिक्षा का प्रचार प्रसार निरंतर हो रहा है। सरकार ने अनेक कानून महिलाओं के पक्ष में बना दिए हैं।

अब सबसे बड़ा सवाल यह आता है कि क्या कानून ने महिलाओं को पूरी तरह सुरक्षित एवं संरक्षित कर दिया है?- तो जवाब हाँ होगा।

इस सम्बंध में निम्नलिखित विधिक प्रावधान उल्लेखनीय हैं -


धारा 100 आईपीसी - महिला से अपने आत्मसम्मान, अपनी आत्मरक्षा व महिला अस्मिता की रक्षा के लिए किसी व्यक्ति की हत्या भी हो जाये तो उसे अपराध की श्रेणी में नहीं रखा जाता।


धारा 294 आईपीसी - इसके तहत यदि कोई व्यक्ति किसी महिला के लिए किसी सार्वजनिक स्थान पर कोई अश्लील ,अभद्र या गलत भाषा का इस्तेमाल करे, उसे इंगित कर अश्लील गाना गाये, आपत्तिजनक इशारा करे, तो वह इस धारा के तहत आरोपी घोषित किया जा सकता है।


धारा 354 आईपीसी - महिलाओं में असुरक्षा का मुख्य कारण उनके दैनिक जीवन में होने वाली छेड़छाड़ रही है। इसके लिए इस धारा में संशोधन कर महिलाओं को stalk करना, तथा social sites द्वारा किसी महिला के आत्मसम्मान को बार-बार ठेस पहुंचाना, मानसिक रूप से प्रताड़ित करना आदि सभी अपराध की श्रेणी में रखे जा चुके हैं । पहले महिलाओं में सोशल मीडिया को लेकर एक असुरक्षा की भावना थी। जो धीरे-धीरे समाप्त हो रही है।





धारा 376 आईपीसी- इस कानून में भी बहुत सारे संशोधन कर बलात्कार को गंभीर अपराध की श्रेणी में रखा जा चुका है। इन मामलों में न्यायालय को भी दो माह में निर्णय के निर्देश दिए जा चुके हैं। महिलाओं को यह अधिकार दिया जा चुका है कि कोई भी व्यक्ति उनका यौन शोषण ना करे, उसके लिए धारा 114 - A साक्ष्य अधिनियम में महिला की असहमति के बयान ही प्रमाणित माने जाते हैं।






धारा 493 आईपीसी- यदि कोई व्यक्ति किसी महिला को शादी का झांसा देकर उसका शारीरिक और मानसिक शोषण करता है तो इस धारा के तहत पीड़ित महिला अपना केस दर्ज करा सकती है। यह एक गैर जमानती अपराध है और प्रथम श्रेणी के न्यायाधीश द्वारा विचारणीय है। यह अपराध समझौता करने योग्य नहीं है।


धारा 46 सीआरपीसी - इसमें महिलाओं के लिए कई कानून बना दिए गए हैं जैसे

* महिलाओं को रात्रि के समय गिरफ्तार नहीं किया जा सकता।

* महिला पुलिस द्वारा ही उसकी तलाशी या गिरफ्तारी संभव है।

* पैसे की रिकवरी के लिए महिलाओं की गिरफ्तारी नहीं की जा सकती।





धारा 160 सीआरपीसी - महिलाओं को पुलिस स्टेशन पर पूछताछ के लिए नहीं बुलाया जा सकता। पुलिस, महिला कॉन्स्टेबल या महिला के परिवार के सदस्य या उसकी महिला मित्र की उपस्थिति में महिला के घर पर ही उससे पूछताछ कर सकती हैं।


यही नहीं महिलाओं को परिवार में भी अनेक प्रकार के संरक्षण व सुरक्षा प्रदान की जा चुकी है।


जैसे कि विवाहित महिलाओं को पति या ससुराल वाले तंग करें तो वह धारा 498 -A के तहत आपराधिक मुकदमा दर्ज करवा सकती है।

महिला अपने पति से और पिता से अलग रहकर भी धारा 125 सीआरपीसी के तहत भरण पोषण प्राप्त करने की अधिकारी है।

यही नहीं अब तो महिलाएं किसी भी व्यक्ति के साथ घरेलू संबंधों में है, वह व्यक्ति उसको प्रताड़ित करे तो घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 के तहत भरण- पोषण व क्षतिपूर्ति प्राप्त करने की अधिकारी है।




अनुच्छेद 39- A- भारत के संविधान का अनुच्छेद 39-A महिलाओं को मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान करता है।

मुफ्त कानूनी सेवाओं में शामिल है-

-अदालत शुल्क, प्रक्रिया शुल्क और देय सभी अन्य शुल्कों का भुगतान।

-कानूनी कार्यवाही में वकीलों की सेवा प्रदान करना।


धारा 312 से लेकर 315 आईपीसी - किसी भी गर्भवती महिला का उसकी मर्जी के बिना गर्भपात किया जाता है तो वह अपराध की श्रेणी में आता है।





विवाहित महिलाओं को अपने पूर्वजों की संपत्ति में बराबर का हिस्सा देने के बाद महिलाएं अब हर प्रकार से अपने आप को सुरक्षित व संरक्षित समझ सकती हैं।


उपरोक्त सभी कानूनी सुरक्षा के बाद भी महिलाओं की सबसे बड़ी समस्या यह थी कि कानूनों का संरक्षण आसानी से कैसे प्राप्त करें?

उपरोक्त सभी प्राप्त करना भी महिलाओं के लिए बहुत आसान हो गया है। महिलाएं अपने मोबाइल में महिला हेल्पलाइन - 1091, Domestic Abuse - 181 तथा क्षेत्र के थाने व PCR VAN के नंबर अपने मोबाइल में सुरक्षित रखें जिससे कि किसी भी दुर्घटना को होने से पूर्व ही सूचित किया जा सके।


एक महत्वपूर्ण तथ्य

महिलाओं के पक्ष में धारा 166 - A आईपीसी है । इसमें प्रावधान किया गया है कि महिला द्वारा सूचित किए गए अपराध को दर्ज करने से कोई पुलिस अधिकारी इनकार नहीं कर सकता। यदि ऐसा होता है तो संबंधित व्यक्ति को 6 माह से लेकर 2 वर्ष की सजा का प्रावधान है। यह कार्य पुलिस अधिकारी को नौकरी के अयोग्य भी बना सकता है।

इन सभी कानूनों के बाद नहीं लगता कि महिलाएं सुरक्षित नहीं है। आवश्यकता है केवल जागरूकता की।



Care B4 Cure

802 views5 comments
bottom of page