"विवाहित पुत्रियों को पूर्वजों की संपत्ति में बराबर हिस्सा हमारी सामाजिक प्रथाओं को प्रभावित करेगा"
Updated: Oct 26, 2020
कानून द्वारा विवाहित पुत्रियों को पूर्वजों की संपत्ति में हिस्सा दिए जाने से हमारी सामाजिक प्रथाएं प्रभावित होंगी।
हमारी कौन सी सामाजिक प्रथाएं प्रभावित होंगी ? -
बहुत समय तक समाज में महिलाओं का संपत्ति में मालिकाना हक भी नहीं रहा था।
अब तक समाज में विवाह के समय पुत्रियों को स्त्रीधन देना, दहेज देना प्रचलन में है तथा विवाह के पश्चात भी सात पीढ़ियों तक पुत्रियों के माता - पिता व भाई बंधु निरंतर पुत्रियों के लिए कुछ ना कुछ करते रहते हैं
जैसे - सभी तीज त्यौहारों पर कुछ भिजवाना , जन्म - मरण मरण में भी कुछ ना कुछ खर्च करना ।
ये सब प्रथाएं समाज ने इसीलिए बनाई थी क्योंकि विवाह के बाद पुत्रियों का पूर्वजों की संपत्ति में हिस्सा नहीं था।
अब जब विवाहित पुत्रियों को पूर्वजों की संपत्ति में बराबर का हिस्सा दे दिया गया तो भात , जामणा आदि अनेक प्रथाओं में बदलाव होगा।
कन्यादान-
सामाजिक विवाह समारोह-
अब तक विवाह का आशय था कि पुत्री का संबंध माता-पिता से विच्छेद होकर पति से जुड़ना।
तो विशाल सामाजिक विवाह समारोह की कोई आवश्यकता ही नहीं रही। ये प्रथा भी धीरे-धीरे अब बदलेगी।
स्त्रीधन-
अब तक स्त्री धन की अवधारणा इसलिए थी क्योंकि स्त्रियों का संपत्ति में अधिकार नहीं था।
विवाह के बाद ससुराल गमन -
दहेज -
पुत्रियां भी वंशज हो सकेंगी -
विवाह संस्कार नहीं संविदा होगा -
हाँ, अनेक प्रथाओं के समाप्त होने के बावजूद भी विवाहित पुत्रियों को पूर्वजों की संपत्ति में बराबर हिस्सा महिला सशक्तिकरण की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा । हिस्सा लेना या ना लेना पूरे महिलाओं के स्वयं के विवेक पर है।
कोई अन्य व्यक्ति उस पर दबाव बनाएगा तो वह उसके लिए दंडित भी किया जा सकेगा, क्योंकि