अब तक समाज में विवाह के समय पुत्रियों को स्त्रीधन देना, दहेज देना प्रचलन में है तथा विवाह के पश्चात भी सात पीढ़ियों तक पुत्रियों के माता - पिता व भाई बंधु निरंतर पुत्रियों के लिए कुछ ना कुछ करते रहते हैं
जैसे - सभी तीज त्यौहारों पर कुछ भिजवाना , जन्म - मरण मरण में भी कुछ ना कुछ खर्च करना ।
ये सब प्रथाएं समाज ने इसीलिए बनाई थी क्योंकि विवाह के बाद पुत्रियों का पूर्वजों की संपत्ति में हिस्सा नहीं था।
अब जब विवाहित पुत्रियों को पूर्वजों की संपत्ति में बराबर का हिस्सा दे दिया गया तो भात , जामणा आदि अनेक प्रथाओं में बदलाव होगा।
अब तक हम विवाह के समय अपनी पुत्री को दान करते थे। जिससे कि उसका जीवन निर्वाह, भरण - पोषण किसी अन्य व्यक्ति को सुपुर्द कर सकें।
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